लोकसभा चुनाव में एकला चलो की राह पर चलकर बसपा सबकुछ गंवा चुकी है. 2014 से भी बुरा हाल 2024 में बसपा का हुआ है. पार्टी जीरो सीटों पर ही नहीं सिमटी बल्कि वोट शेयर भी 10 फीसदी से कम हो गया है. ऐसे में मायावती ने बसपा को दोबारा खड़ा करने के लिए पार्टी संगठन में ओवरहालिंग शुरू कर दिया है, जिसकी शुरुआत उन्होंने जिला संगठन से किया है. यूपी के आधा दर्जन की कार्यकारिणी में बदलाव करके नए तरीके से गठन किया है तो हरियाणा में इनेलो के साथ हाथ मिलाकर गठबंधन की राह पर चलने का कदम बढ़ा दिया है. ऐसे में अब देखना है कि 2027 यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा क्या कमबैक कर पाएगी?
उत्तर प्रदेश में बसपा का सियासी आधार चुनाव दर चुनाव घटता जा रहा है. 2024 के चुनाव में बसपा को यूपी में 9.39 फीसदी वोट मिला है, जो 1989 के चुनाव में मिले वोट शेयर के बराबर है. ऐसे में साफ है कि दलित वोटों का बड़ा हिस्सा छिटका है, जिसमें जाटव भी शामिल है. चंद्रशेखर आजाद अब सांसद बनने के बाद बसपा के नई चुनौती बन गए हैं, जिसके चलते मायावती अपने कैडर वोट को बचाने के लिए हर दांव आजमा रहीं हैं. अब संगठन में दलित और पिछड़े वर्ग को तरजीह देनी शुरू कर दी है, जिससे बसपा को दोबारा से खड़ा किया जा सके.
लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद बसपा ने यूपी की आधा दर्जन जिला इकाइयों का गठन किया है. लखनऊ, प्रयागराज, रायबरेली, प्रतापगढ़ और उन्नाव जैसे जिले में नई कमेटियां गठित की हैं. बसपा की तरफ से जारी किए गए पत्र में बताया गया है कि पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के आदेश पर नई कार्यकारिणी बनाई गई है. बसपा ने अपने जिला कमेटियों में 60 फीसदी पदाधिकारी दलित समाज से बनाए हैं तो ओबीसी को 30 फीसदी जगह दी है और 10 फीसदी मुस्लिमों को शामिल किया है. इस तरह बसपा ने दलित को तवज्जो देने के साथ ओबीसी-मुस्लिम समीकरण साधने की स्ट्रैटेजी बनाई है.
बसपा प्रमुख मायावती ने चुनावी नतीजों के बाद पार्टी संगठन के राष्ट्रीय, मंडल और जिला कमेटी के बाद अब पार्टी में विधानसभा, सेक्टर और बूथ कमेटी की समीक्षा करने के बाद ओवरहालिंग शुरू की है. यूपी बसपा अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने टीवी-9 डिजिटल को बताया कि लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी की राष्ट्रीय बैठक हुई, जिसमें परिणामों पर समीक्षा की गई. इसके बाद कॉर्डिनेटर मंडल, जिला स्तर की समीक्षा की गई. विधानसभा, सेक्टर और बूथ कमेटी की समीक्षा के बाद बदलाव किए गए हैं. संगठन में निष्क्रिय कार्यकर्ताओं के स्थान पर अब पार्टी के लिए समर्पित और ऊर्जावान लोगों को जगह दी जा रही है. बसपा जाति और धर्म की सियासत नहीं करती है, लेकिन पार्टी बहुजन की सियासत करती है, जिसमें दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों के लिए काम करती है.
2024 के चुनाव में बसपा से उसका परम्परागत दलित वोट भी छिटक गया. 2014 से 2022 तक यह बात भी आई कि पहले बीजेपी ने उसके दलित वोट में सेंध लगाई और 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन भी कुछ हद तक कामयाब रहा. यही वजह है कि बसपा प्रमुख मायावती की पहली चुनौती उसे अपना दलित वोट बैंक वापस लाने की है. यही वजह है कि मायावती ने आकाश आनंद को दोबारा सियासी ओहदा लौटाया है. इसके साथ पार्टी में बदलाव भी शुरू कर दिए हैं और उपचुनाव में सभी 10 सीटों पर मजबूती से लड़ने की तैयारी कर रहीं हैं.
हाल ही में हाथरस कांड पर भी जितनी हमलावर मायावती दिखीं, उतना कोई और नहीं दिखा. मायावती लगातार दलितों को आगाह कर रही हैं कि इन बाबाओं के चक्कर में न पड़ें. कोई दूसरी पार्टी भी उनकी हितैषी नहीं है. बसपा के साथ जुड़कर खुद सत्ता हासिल करें. अब संगठन में भी सबसे ज्यादा तवज्जो दलितों को ही दे रही हैं. तमिलनाडु में अपने प्रदेश अध्यक्ष की हत्या पर वह खुद अपने भतीजे और उत्तराधिकारी आकाश आनंद के साथ वहां संवेदना प्रकट करने गईं.
हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए बसपा ने इनेलो के साथ हाथ मिला लिया है. आकाश आनंद ने गुरुवार को गठबंधन का ऐलान किया है. हरियाणा में बसपा 37 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जहां पर सारा दरोमदार आकाश आनंद पर होगा. यह हरियाणा में खिसके दलित वोटों को फिर से जोड़े रखने की मायावती की रणनीति है, क्योंकि दलित वोट बसपा की तरफ गया है. कांग्रेस हरियाणा में दलित और जाट समीकरण पर काम कर रही है, जिसकी वजह से मायावती ने जाट वोटों पर आधार रखने वाली इनेलो के साथ गठबंधन करके बड़ा दांव चला है.
कांशीराम के दौर से ही बसपा दलित, ओबीसी और मुस्लिम गठजोड़ की राजनीति करती रही है. इनमें भी खासतौर से दलित इस गठजोड़ का मुख्य आधार रहा है. उसे यह डर सता रहा है कि अभी तो कुछ दलित छिटके हैं, बचा हुआ दलित वोट भी छिटक गया तो फिर बसपा के लिए बहुत बड़ा झटका होगा, क्योंकि इस वोटबैंक पर सभी विपक्षी दलों की निगाहें है. यूपी में अब नया खतरा चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी से भी है. चंद्रशेखर भी दलित राजनीति का नेतृत्व करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं. ऐसे में मायावती भी दलित समाज को संगठन में जगह देकर सियासी संदेश देने की कवायद कर रही है.
30 से अब 9 फीसद पर लुढ़का वोट बैंक यूपी में 2007 में मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से विधानसभा में 30.43 फीसद वोट हासिल किए. 2009 के लोकसभा चुनावों में भी बसपा ने 27.4 फीसदी वोट हासिल किए. 2012 में सोशल इंजीनियरिंग की चमक कमजोर पड़ गई. वोट गिरते हुए 25.9 फीसदी पर पहुंच गए. 2014 के लोकसभा चुनावों में बसपा को 20 फीसदी वोट मिले. 2017 में 23 फीसदी वोट मिले, लोकसभा चुनाव 2019 में 19.36 और 2022 में सिर्फ 18.88 फीसद वोट हासिल किए. वहीं हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा 9.8 फीसद वोट ही हासिल कर सकी.
यूपी में बसपा कैसे करेगी कमबैक? लोकसभा चुनाव से पहले बसपा ने गांवों तक कैडर कैम्प किए थे, इसमें छोटी-छोटी बैठकें कर पार्टी का विजन साझा किया गया. इसी सिलसिले के बीच बहुजन समाज की विचारधारा से जुड़े लोगों को संगठन में जगह भी प्रदान की गई. महीनों चले कैम्प के बाद बसपा पदाधिकारियों ने कार्यकर्ताओं की लंबी चौड़ी फौज बनाने का दावा किया. इसमें राज्य के 1 लाख 74 हजार 359 बूथों पर 5 सदस्यीय कमेटी गठित होने की बात कही थी. लिहाजा चुनाव के पहले 8 लाख 71 हजार 795 कार्यकर्ताओं की फौज सिर्फ बूथ लेवल पर तैनाती का खाका खींचा.
वहीं 10 बूथ पर एक सेक्टर कमेटी बनाई गई है. ऐसे में प्रदेश में करीब 17 हजार 435 सेक्टर कमेटी होने का दावा किया. इसमें एक सेक्टर कमेटी में 12 मेम्बर रखे गए. इस लिहाज से सेक्टर कमेटियों में 2 लाख 9 हजार 220 पदाधिकारी व सदस्य हुए. ऐसे में बीएसपी के रणनीतिकारों ने राज्य में लोकसभा चुनाव से पहले 10 लाख 81 हजार से ज्यादा मुख्य कार्यकर्ताओं की टीम होने का दंभ भरा, लेकिन नतीजे शून्य रहे. ऐसे में मायावती दोबारा से बसपा को खड़े करने में उसी मुहिम में जुटी है, लेकिन इस बार जमीनी स्तर से बदलाव शुरू किया है.